राग जैतश्री
कन्हैया हालरौ हलरोइ |
हौं वारी तव इंदु-बदन पर, अति छबि अलग भरोइ ||
कमल-नयन कौं कपट किए माई, इहिं ब्रज आवै जोइ |
पालागौं बिधि ताहि बकी ज्यौं, तू तिहिं तुरत बिगोइ ||
सुनि देवता बड़े, जग-पावन, तू पति या कुल कोइ |
पद पूजिहौं, बेगि यह बालक करि दै मोहिं बड़ोइ ||
दुतियाके ससि लौं बाढ़े सिसु, देखै जननि जसोइ ||
यह सुख सूरदास कैं नैननि, दिन-दिन दूनौ हो ||
भावार्थ :-- (माता गा रही हैं) `कन्हैया! पलनेमें झूल! मैं तेरे इस चन्द्रमुखकी बलि
हारी जाऊँ जो अपार शोभा से अलग ही (अद्भुतरूपसे) परिपूर्ण है | `माई री!' (पूतना
का स्मरण करके यह उद्गार करके तब प्रार्थना करती हैं-) दैव! मैं तेरे पैरौं पड़ती
हूँ, इस कमललोचनसे छल करने इस व्रजमें जो कोई आवे,उसे तू उस पूतनाके समान ही
तुरन्त नष्ट कर देना | सुना है तू महान् देवता है, संसारको पवित्र करनेवाला है, इस
कुलका स्वामी है, सो मैं तेरे चरणों की पूजा करूँगी, मेरे इस बालकको झटपट बड़ा कर
दे | मेरा शिशु द्वितीयाके चन्द्रमाकी भाँति बढ़े और यह माता यशोदा उसे देखे |'
सूरदासजी कहते हैं -मेरे नेत्रों के लिये भी यह सुख दिनों-दिन दुगुना बढ़ता रहे |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217