हौं सखि, नई चाह इक पाई |
ऐसे दिननि नंद कैं सुनियत, उपज्यौ पूत कन्हाई ||
बाजत पनव-निसान पंचबिध, रुंज-मुरज सहनाई |
महर-महरि ब्रज-हाट लुटावत, आनँद उर न समाई ||
चलौं सखी, हमहूँ मिलि जैऐ, नैंकु करौ अतुराई |
कोउ भूषन पहिर्यौ, कोउ पहिरति, कोउ वैसहिं उठि धाई ||
कंचन-थार दूब-दधि-रोचन, गावति चारु बधाई |
भाँति-भाति बनि चलीं जुवति जन, उपमा बरनि न जाई ||
अमर बिमान चढ़े सुख देखत, जै-धुनि-सब्द सुनाई |
सूरदास प्रभु भक्त-हेत-हित, दुष्टनि के दुखदाई ||
भावार्थ :-- (कोई गोपी कहती है-) `सखी! मैंने एक नवीन बात सुनी है कि इन्हीं दिनों
ब्रजराज श्रीनन्दजी के पुत्र उत्पन्न हुआ है जिसे सब लोग कन्हैया कहते हैं | (वहाँ)
नगाड़े, ढोलक, श्रृंगे, मृदंग, सहनाई आदि पाँचों प्रकार के बाजे' बज रहे हैं |
ब्रजराज व्रजरानी (आज) व्रजका पूरा बाजार (उपहारमें) लुटाये दे रहे हैं, उनके हृदय
में आनन्द समाता नहीं हैं ! इसलिए सखी ! तनिक शीघ्रता करो ! हम सब भी एकत्र होकर
वहाँ चलें |' किसी ने आभूषण पहिन लिया, कोई पहिनने लगी और कोई जैसे थी वैसे ही उठी
और दौड़ पड़ी | स्वर्ण के थाल में दूर्वा तथा गोरोचन लिये बधाई के सुन्दर गीत गाती
हुई (व्रजकी) युवतियाँ नाना प्रकार के श्रृंगार करके चल पड़ी , उनकी उपमा का तो
उपमा नहीं किया जा सकता | देवता विमानों पर चढ़े इस आनन्द को देख रहे हैं, उनके जय
-जयकार करने का शब्द सुनायी पड़ रहा है | सूरदासजी कहते हैं कि मेरे प्रभु भक्तों
के लिये हितकारी तथा दुष्टों के लिये दुःखदायक (उनका विनाश करनेवाले) हैं |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217