सूरदास
परिशिष्ट
पदों में आये मुख्य कथा-प्रसंग
रामावतार
एक वन से दूसरे वनमें घूमते श्रीराम पञ्चवटी पहुँचे | मार्गमें वे विराध राक्षसको
मार चुके थे | पञ्चवटीमें रावणकी बहिन शूर्पणखा उनके पास कपटपूर्वक बुरे अभिप्राय
से आयी | उसकी दुष्टताके कारण लक्षमणजी ने उसके नाक-कान काट लिये | शूर्पणखा
दौड़ी हुइ रावणके सेवक खर-दूषणके पास गयी | खरदूषण और त्रिशिरा-ये तीनों चौदह
हजार राक्षसी सेना लेकर युद्ध करने आये ; किंतु श्रीरामने अकेले ही थोड़ी-सी देरमें
सबको यमलोक भेज दिया |
शूर्पणखा लंका पहुँची, उसकी सब बातें सुनकर रावण मारीचको साथ लेकर पञ्चवटी आया |
मारीच सोनेका मृग बनकर घूमने लगा | सीताजी के कहनेसे श्रीराम उसे मारने दौड़े | दूर
जाकर उन्होंने मारीचको मार दिया | मरते समय उस राक्षसने लक्षमणजी का नाम पुकारा |
लक्ष्मणजी भी श्रीजानकीजीके कहने से श्रीरामके पास गये | उसी समय रावणने सीताका
हरण कर लिया | वह जब श्रीजानकीजीको ले जा रहा था, मार्गमें गीधराज जटायुने उसे
रोका, किंतु रावणने तलवारसे जटायुके पंख काट दिये | सीताजीको लंका ले जाकर उसने
अशोकवाटिकामें रख दिया |
मारीचको मारकर श्रीराम लौटे | आश्रममें सीताको न देख वे वियोगमें व्याकुल होकर
लक्ष्मणके साथ उन्हें ढूँढ़ते आगे चले | मार्गमें घायल जटायु मिले | श्रीरामको रावण
द्वारा जानकीजी के हरे जानेका समाचार देकर जटायुने शरीर छोड़ दिया | भक्तवत्सल
रामजीने बड़े सम्मानसे जटायुका अन्तिम संस्कार किया | वहाँसे चलते हुए रामजी शबरी
के आश्रममें पहुँचे | शबरीने उनका सत्कार किया और प्रभुने उसे भक्तिका उपदेश किया |
फिर ऋष्यमूक पर्वतके पास पहुँचनेपर हनुमानजी मिले, उन्होंने सुग्रीवसे परिचय तथा
मित्रता करायी | वानरराज बालीने अपने छोटे भाई सुग्रीवको मारकर निकाल दिया था |
रघुनाथजीने एक ही बाणसे सात तालवृक्षोंको विद्ध करके सुग्रीवको विश्वास दिलाया कि
वे बालीको मार देंगे | फिर बालीको मारकर उन्होंने सुग्रीवको किष्किंधाका राज्य
दिया |
Bihar became the first state in India to have separate web page for every city and village in the state on its website www.brandbihar.com (Now www.brandbharat.com)
See the record in Limca Book of Records 2012 on Page No. 217